Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
रक्षाबंधन - Sandeep Chobara (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

रक्षाबंधन

  • 146
  • 4 Min Read

रक्षाबन्धन

बड़ा चाव चढ़ जाता था
जब आता था त्योहार रक्षाबंधन का
बहनें आती मायके थी
बहुत सारे अरमान लेकर।

पर अबकी बार वो
नहीं बांध पाएगी
उस भाई की कलाई पर
अपनी रक्षा का सूत्र।
अब कैसे जा पाएगी
वो बहनें.....
जिसका इकलौता भाई
चल बसा हो दुनिया से।

क्या-क्या सोच रही होंगी
कैसे जा पाएंगी?
किसको बांधेगी वो राखी
अब कोई भी तो रहा नहीं
यही सोच रही होगी
वो बहनें
त्योहार रक्षाबंधन पर।

बहुत रोएगी याद करके
आँखों में आँसू लेकर
उस भाई के स्नेह को
सोचेगी...
किसको बाँधूँगी रखी?
अबकी त्योहार रक्षाबंधन पर।

जिंदगी भर खलेगी
उस भाई की कमी
हर बार आएगी याद
उन बहनों को
अपने मायके की
त्योहार रक्षाबंधन पर।।

संदीप चौबारा
फतेहाबाद
(हरियाणा)
मौलिक एवं अप्रकाशित
२८/०७/२०२०

FB_IMG_1596347465207_1596475064.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हाई
logo.jpeg