कविताअतुकांत कविता
रक्षाबन्धन
बड़ा चाव चढ़ जाता था
जब आता था त्योहार रक्षाबंधन का
बहनें आती मायके थी
बहुत सारे अरमान लेकर।
पर अबकी बार वो
नहीं बांध पाएगी
उस भाई की कलाई पर
अपनी रक्षा का सूत्र।
अब कैसे जा पाएगी
वो बहनें.....
जिसका इकलौता भाई
चल बसा हो दुनिया से।
क्या-क्या सोच रही होंगी
कैसे जा पाएंगी?
किसको बांधेगी वो राखी
अब कोई भी तो रहा नहीं
यही सोच रही होगी
वो बहनें
त्योहार रक्षाबंधन पर।
बहुत रोएगी याद करके
आँखों में आँसू लेकर
उस भाई के स्नेह को
सोचेगी...
किसको बाँधूँगी रखी?
अबकी त्योहार रक्षाबंधन पर।
जिंदगी भर खलेगी
उस भाई की कमी
हर बार आएगी याद
उन बहनों को
अपने मायके की
त्योहार रक्षाबंधन पर।।
संदीप चौबारा
फतेहाबाद
(हरियाणा)
मौलिक एवं अप्रकाशित
२८/०७/२०२०