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कवितानज़्म
विमर्श के नाम पर नारी की इज्ज़त आबरू का मान मर्दन चीर-हरण चरित्र-हनन ज़्यादा हुआ है, नारी के तन मन की दयनीय दुर्दशा की चिंता पर वास्तविक चिंतन मनन वांछित से आधा हुआ है! @"बशर"