Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
सवेरा - Alok Mishra (Sahitya Arpan)

कविताबाल कविता

सवेरा

  • 245
  • 4 Min Read

सवेरा

हुआ सवेरा दिन निकला, चिड़िया चहक रही डाली डाली l
एक नयी स्फूर्ति है फैली सुबह की है छटा निराली l
तन मन दोनों प्रफुल्लित हैं आलस का है नाम नहीं l
अपनी प्रात दिनचर्या में लगे हैं कर रहा कोई आराम नहीं l
सूरज ने आँखें खोली फ़ैल रहा चंहु दिस उजियारा l
आलोकित जग हुआ और मिट गया तिमिर का अँधियारा l
ऐसे स्फूर्तमय काल में प्यारे तन्द्रा को को तुम त्यागो l
निद्रा का परित्याग करो उठो खड़े हो और नींद से जागो l
है समय ये ऐसा नूतन दिवस दिवस का करो अभिवादन l
लग जाओ निज काम में और करो उसका सफल सम्पादन l
चिड़ियों के सन्देश को तुम आत्मसात कर लो प्यारे l
मेहनत मूल है सफलता का गाँठ बाँध धर लो प्यारे l l

(आलोक मिश्र )

172645278364561759990619244974_1726452917.jpg
user-image
Alok Mishra

Alok Mishra 5 days ago

एक बार मेरी पोस्ट को गौर करिये l लाइक, कमेंट, शेयर या कुछ औरकीजिए l लिखता बड़ी शिद्दत से हूं अगर वक़्त हो तो गुजारिश है पढ़ा कीजिए l

Alok Mishra

Alok Mishra 5 days ago

कोई पढ़े या ना पढ़े अपना जूनून कलम चली तो लिखता जाऊंगा l.

प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हाई
logo.jpeg