कविताबाल कविता
सवेरा
हुआ सवेरा दिन निकला, चिड़िया चहक रही डाली डाली l
एक नयी स्फूर्ति है फैली सुबह की है छटा निराली l
तन मन दोनों प्रफुल्लित हैं आलस का है नाम नहीं l
अपनी प्रात दिनचर्या में लगे हैं कर रहा कोई आराम नहीं l
सूरज ने आँखें खोली फ़ैल रहा चंहु दिस उजियारा l
आलोकित जग हुआ और मिट गया तिमिर का अँधियारा l
ऐसे स्फूर्तमय काल में प्यारे तन्द्रा को को तुम त्यागो l
निद्रा का परित्याग करो उठो खड़े हो और नींद से जागो l
है समय ये ऐसा नूतन दिवस दिवस का करो अभिवादन l
लग जाओ निज काम में और करो उसका सफल सम्पादन l
चिड़ियों के सन्देश को तुम आत्मसात कर लो प्यारे l
मेहनत मूल है सफलता का गाँठ बाँध धर लो प्यारे l l
(आलोक मिश्र )
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