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कवितानज़्म
कोईभी शख़्स किसी दूसरे शख़्स की पहचान नहीं होता यकसाँ शक्ल - ओ -सूरत का यहाँ पर इन्सान नहीं होता यहाँ तो खुदा भी सबके अलग अलग हैं जमाने में 'बशर' उसीकी अपनी दुनिया में यकसाँ खुद भगवान नहीं होता © 'बशर' بشر.