कवितालयबद्ध कविता
एक शेर ही निकल पड़ा है देश ध्वज सम्भालने को।
अनगिनत बाधा आई हैं अकेले मोदी से टकराने को।।
सौंगध खाई है इस मिट्टी की ये देश नहीं झुकने देंगे।
प्रगति पथ पर अग्रसर हो रहे ये देश नहीं रुकने देंगे।।
आत्मनिर्भर होता भारत विश्व में एक पहचान पाई है।
तकनीकी उद्योग विज्ञान को एक नई राह दिखाई है।।
मन में एक दिया जला रखा भारत विश्वगुरू बनाने को।
ऊर्जा, क्षमता,दृढ़ इच्छाशक्ति ये सबको समझाने को।।
देश सेवा ही धर्म-कर्म जिसका ऐसा प्रधान सेवक है।
फंसती है जब जब नाव मझधार में ऐसा नाविक है।।
कितने सत्ताधारी आये और कितने देश लूट के चले गये।
घोटालों,भ्रष्टाचारों से देश पर कालिख पोत के चले गये।।
नव युग का आरंभ हो गया यह पुरूष स्वाभिमानी है।
हर विषय में पकड़ बनाये यह ऐसा परम तत्वज्ञानी है।।
धन्यवाद