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कवितानज़्म
मुसलसल मेहनत करते रहनेसे मुकद्दर बनता है साथ रहने से नहीं मनोंके मिलने से घर बनता है कंकरीट की इमारतों का नाम शहर नहीं होता है ज़िन्दगी जिंदा नज़र आती हैं वहाँ शहर बनता है @"बशर "