कवितालयबद्ध कविता
: सफ़लता (कविता)
तू शान अपने देश की यूँ ही बढ़ाए जा ।
मानवता को अपनाकर रास्ता बनाए जा ।
देश धर्म के समान कोई धर्म नहीं है ।
तप नहीं है और ना ही भक्ति कोई है ।
बनकर अक्षर स्वर्ण-सा तू राष्ट्र मे अंकित होता जा ।
क्यों प्यार के पीछे पागल है तू वीरगान को लिखता जा ।
सच्चे दिल से सेवा कर जीवन सफल बनाए जा ।
तेरी मोहब्बत की नैया भी समयानुसार सफल होगी ।
तू अंधा होकर इस तरह कुछ भी नहीं कर पाएगा ।
मन मे प्रीत जगाकर बंधु जीत जगत में पाएगा ।
बच्चा-बच्चा देशप्रेम की शौर्य गाथा गाएगा ।
तन मन धन से अर्पित हो एक गीत नया लिख पाएगा ।
इस तरह से मानव तेरा जन्म सफल हो जाएगा ।
: संजीव कुमार