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विदेशों में हिन्दी , हिन्दी का विदेश - Usha Bhadauria (Sahitya Arpan)

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विदेशों में हिन्दी , हिन्दी का विदेश

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विदेशों में हिन्दी , हिन्दी का विदेश

आज का हिन्दी सच

हम भारत के वासी हैं और हिन्दी हमारी पहचान है।
पर आज के समय में हम हिन्दी से हैं यह कहना पूरी तरह से सच नहीं होगा क्यूँकि इसमें दो राय नहीं कि आज हिन्दी हम से है । यूँ तो हिन्दी का प्रचार प्रसार विश्व में हर जगह तेजी से किया जा रहा है पर साथ ही यह भी सच है कि हमारे अपने देश में ही इसकी महत्ता कम होती जा रही है साथ ही अंग्रेज़ी भाषा को बढ़ावा । अगर आप हिन्दी में बात करते हैं तो आपको बुद्धिहीन समझा जाएगा वहीं फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने वाले को महा बुद्धिमान का दर्जा मिलते देर नहीं लगती । इसकी एक मुख्य वजह है आत्मविश्वास में कमी । हमारे देश के लोगों में आत्मविश्वास की कमी दिखायी देती है ।लोग इतने आत्मविश्वासी नही है इसलिए वे भाषा और बुद्धिमत्ता को एक साथ जोड़ देते है। उन्हें यह लगता है कि अगर हिंदी में बात की तो लोग सोचेंगे कि उन्हें कुछ आता ही नहीं है।

तो अगर आप हिंदी का भला चाहते हैं कि वह ऐसे उपेक्षित न हो तो इसके लिए जो वाकई में इंटेलीजेंट है और जो पब्लिक फ़िगर हैं उनको इसे ज्यादा से ज़्यादा उपयोग करना चाहिए जिससे बाक़ी सभी लोग भाषा को लेकर कॉंफिडेंट हो सके ।

Social media का रोल -

वैसे सोशल मीडिया ने हिन्दी के प्रचार प्रसार में काफ़ी योगदान दिया है । इंटेरनेट की वजह से अब काफ़ी बड़ी संख्या में युवा वर्ग हिन्दी से जुड़ता जा रहा है । आज इंटेरनेट के माध्यम से कम समय में हिन्दी लेख, साहित्य उपलब्ध हैं जिनसे लोगों में हिन्दी पढ़ने में रुचि बढ़ी हैं । साथ ही साहित्य दायरा भी बड़ा है ।लेखन के लिए मंच मिला है जिससे लोगों ने अपनी सोच को शब्द दिए हैं । उदाहरण के लिए,Facebook पर , साहित्य के कई समूहों में पाठन करते करते कब हमने अपने विचारों को शब्द दे दिये पता ही नहीं चला और उसे ख़ूब सराहा भी गया।इस तरह साहित्य में क़दम अपने आप बढ़ते चले गये .. और इसके लिए कुछ ख़ास मेहनत भी नहीं लगी क्यूँकि यह हमारी अपनी भाषा थी जिसको लोगों ने ख़ूब सराहा और लघुकथाकार के रूप में एक नई पहचान मिली।

इंटेरनेट के अलावा , हिंदी सिनेमा ने भी हिंदी को विश्व के कोने कोने तक पहुँचाया है। कुछ हिन्दी movies तो इतनी पोपुलर हुई हैं जिनको अन्य भाषाओं में भी अनुवाद करके देखा गया ।
इसी प्रकार कई हिन्दी गाने विश्व के हर हिस्से में गुनगुनाए जाते हैं ।
Netflix , Amazon video ने हिन्दी series , documentaries प्रसारण करके युवाओं में हिन्दी प्रेम जगाने का काम किया है ।

Britain में हिन्दी का प्रचार प्रसार -

हिन्दी प्रचार प्रसार के लिए यहाँ ब्रिटेन में बहुत सारे आयोजन समय समय पर कराए जाते रहें हैं । इसके लिए हिन्दी व संस्कृति अधिकारी अताशे आदरणीय तरुण कुमार सर को मेरा बहुत बहुत धन्यवाद । इसी प्रकार कई सहित्यक गुणीजनों द्वारा उनके साहित्य लेखन से किया गया योगदान हमेशा सराहनीय रहा है । कविता पाठ, बाल लेखन प्रतिस्पर्धाएँ , सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि हमारी भाषा और संस्कृति को बनाए रखने के साथ साथ भारतीय लोगों में हिन्दी के प्रेम को हमेशा बनाए रखते हैं । इन आयोजनों का हिस्सा बनना भी अपने आप में एक बड़ा गौरव है । हिन्दी दिवस १४ सितम्बर और विश्व हिन्दी दिवस(१० जनवरी ) एक साथ मिलकर मनाना भी किसी त्योहार से कम नहीं लगता। अच्छा लगता है और गर्व भी होता है , जब एक उच्च स्तर पर इन आयोजनों में सम्मिलित होने का अवसर मिलता है ।

आदरणीय तेजेंद्र सर के सम्पादन में आने वाली पत्रिका पुरवाई कथा यू के , हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य को हमेशा प्रोत्साहन देती आयी है। साथ ही , नए रचनाकारों को इसके अलावा हिन्दी साहित्य में उनका बेजोड़ लेखन भी सराहनीय है।
सभी का नाम लेना सम्भव नहीं क्यूँकि बहुत सारे गुणीजन हैं जो अपनी तरफ़ से, साहित्य व अन्य माध्यमों से हिन्दी विकास में लगे हुए हैं । साहित्यिक योगदान हिन्दी को यहाँ बढ़ावा देता है

बच्चों के लिए खोले गए हिंदी विद्यालयों ने यू के में भी बच्चों को हिन्दी के समीप ही रखा । बीते दिनों में बच्चों के बीच हुए हिंदी विषयों पर वाद विवाद प्रतियोगिता में इन बच्चों का उत्साह देखते बना।

अब कई universities में भी हिन्दी courses को स्थान मिला है जो गर्व की बात है ।

यहाँ हिन्दी भाषी कम हैं पर जब कोई मिलता है हिन्दी बोलने वाला तो दिल ख़ुशी से झूम उठता है । रोज़मर्रा की भाषा में हिन्दी उतनी मुश्किल नहीं रह गयी है । सुविधानुसार कुछ अंग्रेज़ी शब्दों ने हिन्दी सामान्य भाषा में अपने आपको मिला लिया है और वह उतना अजीब भी नहीं लगता । जैसे , बोटल, पेन, रूम, बेड, lock, school आदि । दिन प्रतिदिन यहाँ भी हिन्दीभाषी बढ़ रहें हैं जो एक सकारात्मक संदेश भी है ।

हिन्दी साहित्य विदेश में और देश में -

साहित्य की बात करें तो हम अपने क्षेत्र की ही बात करेंगे । बहुत सारी समानताएँ और विषमताएँ समेटे हुए हैं हिन्दी साहित्य यहाँ विदेश में और देश में ।
हमारी लघुकथाओं कहानियों में , देश की गंगा किनारे बैठे लोगों की तरह ही , Thames के पास बेंच पर बैठे लोगों का चित्रण हैं वहीं दूसरी ओर culture का असर भी पात्रों को प्रभावित करता साफ़ दिखायी देता है । सोच को थोड़ा विस्तार मिलता है । लघुकथा लेखन अक्सर विसंगतियों से आता है । जहाँ आज भी भारत देश में , छोटे कपड़ों पर अभी भी लोग comment कर जातें हैं वहीं यहाँ इन बातों पर किसी की नज़र भी नहीं जाती । पात्रों को यहाँ के अनुसार वेषभूषा डाल सकते हैं ।
पब्लिक place पर हाथों में हाथ डाले चलते लड़के लड़कियों को आज भी भारत में कई नज़रें घूरती नज़र आएँगी पर यहाँ चलते चलते अचानक किस शुरू हो जाना भी अजीब नहीं लगता । इन अंतरों को हिन्दी लघुकथाओं से दर्शाने की कोशिश की जाती है ।

मेरी कथाओं में , पात्र चाहे वह किसी भी उम्र के हों , जीवन को एंजोय करते नज़र आएँगे । एक माँ , fb friend के साथ date पर जाती दिखेगी। ये सब उदाहरण हैं कि साहित्य में समयानुसर बदलाव भी आते हैं जिन्हें लोग स्वीकारते भी हैं ।

अच्छे हिन्दी साहित्य को कई भाषाओं में अनुवादित कर इसको जन जन तक पहुँचाने का प्रयास सदैव ही किया जता रहा है ।
साथ ही libraries में भी हिन्दी साहित्य और अन्य विषयों पर हिन्दी किताबें उपलब्ध होती हैं जो एक प्रसन्नता का विषय है ।

हिन्दी हमारी, आपकी और हम सब की भाषा है। आज हिंदी भाषा हर विषय में, हर क्षेत्र में अपना ध्वज फहराते हुए आगे बढ़ती जा रही है। चाहे वह विज्ञान का क्षेत्र हो या इंटरनेट की दुनिया, सब जगह हिंदी का बोलबाला है। और इस बात के लिए हम सब अपनी पीठ थपथपा सकते हैं क्योंकि किसी भाषा के आगे बढ़ने में उस भाषा को बोलने वाले, लिखने वाले, पढ़ने वाले लोगों का योगदान होता है।

कोटि-कोटि कंठों की भाषा,
जनगण की मुखरित अभिलाषा।।
हिंदी है पहचान हमारी,
हिंदी हम सबकी परिभाषा।। — लक्ष्मीमल्ल सिंघवी जी

हिंदी हमारी राजभाषा है साथ ही हिन्दी एक मात्र भाषा कड़ी है जो बहुत सारी स्थानीय भाषाओं को जोड़कर रखती हैं । हमें हमारी संस्कृति से जुड़ाव कराती है। इसे सहेजना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए सभी को आगे आना चाहिए। साहित्य ना सही पर , अगर आप अगर हिन्दी जानते हैं तो इसे गर्व से बोलिए… अपने घरों में , बच्चों से, अपने दोस्तों में ….
एक बार फिर से … हम हिन्दी से हैं … और हिन्दी हमारी पहचान है ।

लगा रहे प्रेम हिंदी में ,
पढ़ूँ हिन्दी लिखूँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ ,
हिन्दी पहरना , ओढ़ना खाना .....रामप्रसाद बिस्मिल्ल जी

धन्यवाद

ऊषा भदौरिया

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