कवितालयबद्ध कविता
विश्व शांति दिवस पर हमको अब यही कसम खानी है
लड़ाई-झगड़ों में नहीं अब ये ज़िन्दगी गंवानी है
छोड़ दें ईर्ष्या-द्वेष,एक दूसरे से अब प्यार से निभानी है
दूसरों की निन्दा, आलोचना सब बेमानी है
एक दूसरे की समस्याओं को मिलजुलकर सुलझानी हैं
दीन दुखियों का बन सहारा, परेशानियां उनकी मिटानी हैं
धर्म,ज़ात और सीमा के झगड़ों में अब जान नहीं गंवानी है
वसुधैव कुटुंबकम् को करके साकार, लिखनी अब नयी कहानी है
शांति मन में,देश में, विश्व में चहुंओर लानी है
सुख चैन से भरपूर ज़िन्दगी ही सच्ची ज़िन्दगानी है
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर