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चाहत ही मिट जाती है जग में रहने की - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

चाहत ही मिट जाती है जग में रहने की

  • 27
  • 1 Min Read

*आदत जब पड़ जाती है सब कुछ सहने की*
*तब चाहत कोई नहीं रहती है कुछ कहने की*

*इक वक़्त ऐसा भी आता है जीवन में बशर*
*चाहत ही मिट जाती है तब जग में रहने की*

© 'बशर' بشر. 🍁

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