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रक्तचरित्र - Rachana Rajpurohit (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकसस्पेंस और थ्रिलर

रक्तचरित्र

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#हिंदी दिवस
#कहानी:रक्तचरित्र

मैं शहर जा रहा हूँ माँ ध्यान रखना उसका कहीं भाग न जाये अपनी मां की तरह," सुधीर ने मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के कहा।

वापस कब लौटेगा" सुधीर की माँ रुक्मिणी ने पूछा।

कल शाम को, पर तुम नज़र रखना क्या पता उसका रक्त कब चरित्र दिखा दे "

"मुझे भी यही डर लगता है आज़कल कहीं किसी का रक्त अपना चरित्र न दिखा दे"रुक्मिणी मन ही मन बुदबुदाई।

सुधीर मोटरसाइकिल लेकर निकल पड़ा, चौबारे की खिड़की पर खड़ी सुमन सब सुन रही थी,उसे ज़रा भी बुरा नहीं लगा था, उसे अब आदत हो गई थी अपने चरित्र पर फेंके जाने वाले गर्म तेल के छींटों जैसे तानों की।

किसी बच्चे की माँ मर जाये तो उसका बचपन कठिनाइयों में बीतता है लेकिन अगर किसी बच्चे की माँ किसी और के साथ भाग जाए तो,उसका जीवन अभिशाप बन जाता है, वो बस एक कूड़ेदान की तरह रह जाता है जिसमें हर कोई अपनी सोच और ज़ुबान का कचरा फेंक जाता है,और वो कूड़ेदान दिन ब दिन भीतर से सड़ता रहता है।

उसे याद आता था वो दिन, जिस दिन उसकी मां भाग गई थी, किस और के साथ,वो कौन था ये किसी को नहीं मालूम, पर वो भाग गई थी,
उसके बाप ने उसे ननिहाल पहुँचा दिया था, वो एक कुल्टा की बेटी बन गई थी हर कोई उससे नफ़रत करने लगा था,सिवाय बड़े मामू बस वही थे जो उसे अभी तक उतना ही चाहते थे,लेकिन ज़िंदगी ने सुमन से हर उस इंसान को छीन लिया था जो उसे प्यार करता था

मामी का व्यवहार मामा के सामने अलग रहता था, लेकिन उनके पीछे कुछ ही हो गया था और ,अपनी बच्चों को उसके साथ खेलने नहीं देती थी, हर क़दम पर ताने मिलते, बार बार उसके भाग्य को कोसा जाता,पहले माँ भाग गई अब मामा को निगल गई, लेकिन सुमन ये कभी नहीं समझ पाई ,उसकी क्या गलती थी।

सुमन नीचे आ" रुक्मिणी ने आवाज लगाई

" हाँ मौसी,,"

रुक्मिणी "फिर मौसी मां कहा कर कितनी बार कहा है"

"नहीं कह सकती,मां शब्द गाली जैसा है जो मेरे भाग्य का सबसे काला धब्बा है मौसी तुम सब जानती तो हो फिर क्यूँ मेरे ज़ख्म कुरेदती हो " सुमन ने बिना किसी भाव के कहा।

"ऐसा नहीं कहते सुमन मेरी बच्ची ,अब खुश हो आज बाज़ार घूम कर आते हैं,"

"मन नहीं है मौसी ,

"ऐसे कैसे मन नहीं है मैं देखती हूँ," रुक्मिणी अपनी बहू से प्रेम जताते हुए बोली

मौसी और सुमन बाज़ार पहुँच गए,वहाँ घूमने खाने पीने के बाद वो दोनों साड़ी की दुकान पर गई तो तीन चार साड़ियां खरीद कर घर आ गई।
अगले दिन शाम के वक़्त दरवाजे पर दस्तक हुई,मौसी पड़ोस में गई थी ,सुमन ने दरवाजा खोला सामने एक युवक खड़ा था,

"जी कल आप साड़ियां लेने आए थे तो शायद आपकी एक साड़ी पीछे रह गई, युवक ने पैकेट सुमन की ओर बढ़ाते हुए कहा।

"नहीं हम कुछ नहीं भूले, तीन साड़ियां ली थी तीनों हैं" सुमन ने कहा।

"जी नहीं 4 ली थी, रसीद दिखाइए" युवक ने कहा।

"अभी लाती हूँ आप बैठिए " कह कर सुमन अंदर चली गई।

वो युवक वहीं चौक में लगी लकड़ी की कुर्सी पर बैठ गया, सुमन पर्ची देखते हुए कमरे से बाहर निकलने लगी कि देहरी से ठोकर खाकर गिर पड़ी,
वो युवक झट से उठकर मदद के लिए बढ़ा उसने सुमन को सहारा देकर खड़ा किया ही था, की ज़ोर से किसी के गुस्से भरी की आवाज आई,

घर का दरवाजा खुला हुआ था सामने सुधीर गुस्से से लाल हुए खड़ा था
"आखिर दिखा ही दी ना अपनी जात, मेरी पीठ पीछे रंगरेलियां मानाती है, ये ही तेरा यार है ना"

सुधीर ने युवक कॉलर पकड़कर मारने लगा, अरे भाई आपको गलतफहमी हुई है मैं तो ...
सुधीर पर तो मानो खून सवार था उसने कुछ नहीं सुना,तब युवक ने भी पलटवार किया और सुधीर को धक्का देकर वहाँ से भाग गया।

सुधीर ने सुमन को उसके बालों से पकड़ा और मारने लगा, जी भरकर कोसने लगा, गुस्से में उसने सुमन का सिर दीवार पर दे मारा, एक चीख के साथ सुमन बेहोश हो गई, घर का कोहराम सुन कर आसपास के लोग जमा हो गए, मौसी भी आ गई और माज़रा देखकर मानो पैरों तले की ज़मीन खिसक गई, उसके सामने अतीत घूमने लगा,

"देखा मां मैं कहता था न कुल्टा की बेटी कुल्टा ही होगी,रक्त ने अपना चरित्र दिखा दिया,चरित्रहीन मां की चरित्रहीन बेटी"

मौसी ने आगे बढ़ कर एक ज़ोरदार तमाचा सुधीर के गाल पर जड़ दिया,
"रक्त उसका नहीं तेरा चरित्र दिखा रहा है, तेरा ही खून गंदा है, तू भी वही कर रहा जो तेरा बाप करता था, अपनी औरत पर शक ,औरत पर हाथ उठाना और उसे मार देना ये तेरे खून में है मैंने हमेशा तुझे अपने संस्कार दिए लेकिन मैं भूल गई थी तेरे अंदर रक्त तो उनका ही था ना,

मां ये क्या कह रही हो" सुधीर चौक गया
,
"वही कह रही जो मुझे बरसों पहले कह देना चाहिए था सच जानना चाहता है तो सुन तू मेरी औलाद नहीं है,अपने बाप की औलाद है उनकी दूसरी औरत की,मैंने तो बस तुझे पाला है।

सुमन की माँ सुगंधा और मैं दोंनो पड़ौसन थी,बहनों जैसा प्रेम था हमारा, हमारे पति भी गहरे दोस्त थे या कहूँ एक दूसरे के पाप के बराबर के भागीदार थे,और हम दोनों उनके इस रक्तचरित्र से अनजान भी थी।

मैं और सुगंधा दोंनो एक साथ मां बनने वाली थी ,उसने सुमन को जन्म दिया था और मेरा बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ,और उसके बाद डॉक्टर ने बताया मैं कभी मां नहीं बन सकती ,
एक दिन तेरे पिता ने 6 महीने का एक बच्चा यानी तुझे लाकर मेरी गोद में डाल दिया बड़ी बेशर्मी से बताया ये उनकी दूसरी औरत का बच्चा है जो अब मर चुकी है,

मैंने सुना था उसे भी ज़हर दिया गया था, ठीक उसी तरह जिस तरह अपनी अय्याशी के लिए सुंगंधा के पति ने उसे ज़हर दिया था,
क़भी नहीं भूलूंगी वो रात जब दूसरी शादी का विरोध करने पर उसे ज़बरदस्ती ज़हर पिला दिया गया,सुगंधा एड़ियां रगड़ते हुए तड़पते हुए मर रही थी मेरे सामने और उसका पति गिद्ध की तरह उसके मरने का इंतज़ार कर रहा था,उसके बाद तेरे बाप और सुगंधा के पति ने उसे नदी में बहा दिया, और उसके भाग जाने की अफवाह फैला दी, मुझे धमका दिया गया, की मुँह खोलने पर मेरा अंजाम भी वही होगा।मैं डर गई थी,

सुगंधा तो मरकर छूट गई लेकिन उसकी काली किस्मत का ग्रहण इस बच्ची पर लग गया, मैंने उसी दिन सोच लिया था, सुमन को अपने पास ले आऊंगी ,हमेशा अपने आँचल में महफूज रखूँगी लेकिन मुझे नहीं पता था मेरे आँगन में भी वही रक्तचरित्र घूम रहा है जो मेरी बच्ची का रक्तपिपासु बना बैठा है,
तेरे पिता अब नहीं रहे लेकिन उनके खून का असर अब तक तुझमें है,मेरी ममता और संस्कार आज हार गए,मैं भी हार गई , तू भी रक्तचरित्र ही निकला"

कह कर मौसी ज़ोर ज़ोर से रोने लगी, बाक़ी के लोग कानाफूसी करते हुए चले गए, सुमन को होश आ चुका था, उसे अपनी माँ के बेगुनाह होने का पता चल चुका था,अब वो अंदर से शांति महसूस कर रही थी वो गंदा खून नहीं थी,
सुधीर के पांव जड़ हो चुके थे मैं रक्तचरित्र नहीं हूँ माँ ,मैं तेरा बेटा हूँ कहता हुआ वो वहीं मौसी के घुटनों से लिपट गया,
सुमन उठी ,सुधीर के पास वहीं मौसी के घुटनों के पास बैठ गई ,मौसी ने दोंनो को गले लगा लिया, आसुओं से सारे पुराने रक्त के दाग धुलने लगे थे।

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दादी की परी
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