लेखआलेख
राम..यह दो अक्षर का छोटा शब्द है परंतु यह शब्द गहन अर्थ लिए है। राम मात्र भगवान नहीं है अपितु संपूर्ण मानव-जाति के जीवन में रसे-बसे हैं। राम नाम की जड़े इतनी गहरी हैं कि जिसकी वंश बेल में आज भी संपूर्ण मानव जाति वृद्धि को प्राप्त हो रही है।
राम न किसी जाति या सम्प्रदाय से बंधे हैं न ही किसी धर्म या वर्ग से। राम वह धारा है जिसके किनारे रहीम भी गुणगान करते हैं तो निर्गुण कबीर भी,झूमती गाती कहीं मीराबाई 'पायो जी मैंने राम रतन धन पायो' गाती है तो कहीं तुलसी के चरित मानस में हैं।
राम एक धर्म या ईश्वर न होकर मनुष्यों की दिनचर्या में शामिल हैं। चाहें दिन की शुरुआत 'राम-राम' से हो या जीवन का अंत 'राम नाम सत्य है' से हो। राम कहीं निराकार रूप में पूजित हैं तो कहीं साकार रूप में भी।
वर्तमान परिपेक्ष्य में भी एक पिता अपने पुत्र को राम जैसा आदर्शवान बनने की ही प्रेरणा देता है। आज भी राम नाम बड़ा प्रासंगिक है। देश-विदेश की विभिन्न विशवविद्यालयों और संस्थाओं में 'राम के मैनेजमेंट गुण' को वर्णित किया जा रहा है उनके जीवन से सीखा जा रहा है। छात्रों को बताया जा रहा है राम एक स्वयं संस्थान हैं। उनमे उच्च प्रबंधन क्षमता के सभी गुण कूट-कूट के भरे हैं।
राम विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग,साहसी,शौर्य,आत्मबल,आत्मविश्वास,निर्भीक,नेतृत्व जैसे प्रबंधन गुण से ओतप्रोत हैं। यही गुण जन-जन में आदर्श के नाम से प्रचलित हैं। प्रभु राम विपरीत परिस्थितियाँ,चाहें वह चौदह वर्ष का वनबास हो या सीता हरण या फिर लक्ष्मण को बाण लगना,उन्होंने इन विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य धारण किया।
अंततः,राम एक व्यक्ति न होकर स्वंय ही एक धर्म हैं। जिसने प्रभु राम के सभी गुणों को आत्मसात कर लिया समझो उसने धर्म के मर्म को समझ लिया।
धन्यवाद
राधा गुप्ता पटवारी 'वृन्दावनी'