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खुशियाँ अपने पास नहीं आती - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

खुशियाँ अपने पास नहीं आती

  • 32
  • 2 Min Read

इक तो येह ग़ुरबत इस ग़रीब को छोड़कर नहीं जाती
मसर्रतों की तिज़ारत अक़्सर हम को रास नहीं आती

मुफ़लिसी में ग़मोंका कारोबार अच्छा चल रहा है बशर
समीपसे गुज़र जाती हैं खुशियाँ अपने पास नहीं आती

© "बशर" بشر.

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