कवितालयबद्ध कविता
नमन-------साहित्य अर्पण एक पहल
आयोजन----------------प्रतियोगिता
विषय----------------मैं हिन्दुस्तान हूँ
तिथि----------------16/09/2020
वार-------------------------बुद्धवार
विधा---------------------------गीत
मात्राभार--------------------16,13
#मैं_हिन्दुस्तान_हूँ
विविध रूप हैं जिसके दिखते,मैं वो हिन्दुस्तान हूँ।
जीव - जन्तु का रक्षण करता,जीवन का वरदान हूँ।।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई,सबका ढोता भार हूँ।
प्यास मिटाने वाला मैं तो,गंग यमुन जल धार हूँ।।
प्यार करूँ मैं सन्तानों को,करता काम तमाम हूँ।
सकल जगत में नाम हमारा,नहीं हिन्द मैं आम हूँ।।
लक्ष्मीबाई झलकारी अरु,पन्ना का अभिमान हूँ।
विविध रूप हैं जिसके दिखते,मैं वो हिन्दुस्तान हूँ।।
बसते आँचल में देवालय,मन्दिर अक्षर धाम हूँ।
अवधपुरी है शान हमारी,भाग्य विधाता राम हूँ।।
संत महात्मा तुलसी नानक,कवियों का सम्मान हूँ।
कालिदास रसखान भारवी,सूरदास का मान हूँ।।
धर्म सनातन वाली धरती,रखता साथ पुराण हूँ।
विविध रूप हैं जिसके दिखते,मैं वो हिन्दुस्तान हूँ।।
जन्मभूमि हूँ राम कृष्ण की,शंकर का कैलाश हूँ।
निशिचर मेरे डर से भागें,आम जनों की आस हूँ।।
ब्रम्हा विष्णु महेश बिराजें,परशुराम भगवान हूँ।
भीष्म पितामह अर्जुन जैसे,तनुजों से धनवान हूँ।।
जहाँ तपस्या बालमीक नें,मैं वह भूमि महान हूँ।
विविध रूप हैं जिसके दिखते,मैं वो हिन्दुस्तान हूँ।।
गंग यमुन जल कावेरी का,सरिता का मैं तीर हूँ।
ताकत इतनी रखता अन्दर,हृष्ट पुष्ट मैं वीर हूँ।।
वन में रोटी खाने वाले , राणा की तलवार हूँ।
झेल चुका हूँ महायुद्ध को,सुनता मैं ललकार हूँ।।
महावीर गौतम की धरती,हरिश्चन्द्र की शान हूँ।
विविध रूप हैं जिसके दिखते,मैं वो हिन्दुस्तान हूँ।।
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारा का,करता मैं निर्माण हूँ।
शीश झुकाते धर्म धुरंधर,सम्मुख मैं पाषाण हूँ।।
आजाद भगत नेता जी का,देख चुका बलिदान हूँ।
पहिया रुकता नहीं हमारा,हरदम ही गतिमान हूँ।।
पर्वतराज हिमालय हूँ मैं,ताकतवर बलवान हूँ।
विविध रूप हैं जिसके दिखते,मैं वो हिन्दुस्तान हूँ।।
अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तर प्रदेश