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कवितानज़्म
बस्ती - बस्ती दश्त ब दश्त फिरता दीवाना है दिल की क्या बात करें चारों तरफ़ वीराना है फ़ानी जिंदगानी में बशर खुदसे ही बेगाना है दिनढला रात हुई जंगल जोगी का ठिकना है © "बशर" بشر.