Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
हम ख़्वाब को हक़ीक़त में बदलने की ख़्वाहिश रखते हैं बहिश्त में जाकर भी उन से मिलने की ख़्वाहिश रखते हैं लिखा होगा हाथों की लकीरों में फ़िराक़ - ए - हबीब मिरे हम मग़र अपने मुकद्दर को बदलने की ख़्वाहिश रखते हैं © 'बशर' بشر.