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कवितानज़्म
गज़ब है दस्तूर अजा का कब ईनाम कब सजाका किसीको नहीं चला पता कबक्या उसकी रजा का है उस का विधान अपना जिन्दगी दे कर क़ज़ा का इहलोक में मौजो - मजा परलोक संज्ञान जज़ाका @"बशर" अजा-कुदरत, रजा-मर्जी, क़ज़ा-मौत, जज़ा-बदला