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कवितानज़्म
उम्मीद कभी भी बूढी नहीं होती 'बशर' नाउम्मीद भरी जवानी मेंही मर जाते हैं मुर्दा- दिल क्या खाक जीयेंगे ऐय दोस्त जिंदादिल पलमें सदियां जीकर जाते हैं © बशरبشر.