Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
प्यार की हवाएं भी चलीं मुहब्बत की बरसात भी बार-बार आई बेज़ार दिलों की बंजर ज़मीन पर मग़र कोई फसल न लहलहाई © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर"